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April 25, 2014

क्‍यूं ना छू लूँ नीलगगन को: I believe I can Fly

क्‍यूं ना छू लूँ नीलगगन को

क्यूं ना चंद पे पाओं धरूं

हर मंज़िल को लपक के छूलूँ
हर मुश्किल को स्वाहा करूं

मैं तो हूँ उस रब का बंदा
क्यूं फिर और कीसी से डरूँ

आकाश है मेरा रंगमंच
इन्द्रधनुष से रंग भरूँ

मैं समर्थ हूँ, मैं विराट
हर पल जय का उद्घोष करूं

आओ साथ चलो मेरे की दुनिया अपनी राह ताके
कौन और इन सीमाओं को अपने वश में बाँध सके

हर पर्वत अपना मित्र है, हर नदी से अपनी यारी

हर सिंह ने अपने ताज की बाज़ी, बस हम से ही हारी

ये पल वही , ये स्थल वही जो कर्मभूमि केहलायेगी

हर इच्छा तेरी… कर प्रयास तेरी नियती बन जायेगी

क्यूं ना छू लूँ नीलगगन को
क्यूं ना चंद पे पाओं धरूं

हर मंज़िल को लपक के छू लूँ
हर मुश्किल को स्वाहा करूं

 

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